V.S Awasthi

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धरती और बादल

प्रतियोगिता हेतु रचना 
 धरती और बादल
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धरती ने बादलों से विनती की भइया तुम जल बरसाओ।
बादल ने गरज कर आंख तरेरी बहना बस चुप हो जाओ।।
मेरे पास तो जल ही नहीं है कहां से मैं बरसाऊं।
कितने शहरों ने छीन लिया जल अब कहां से मैं जल लाऊं।।
तब धरती ने नोटिस भेजा जल मुझसे ही तो लेते हो।
अभी तो तुमने मूल दिया है क्यों ब्याज नहीं देते हो।।
ब्याज नहीं यदि दिया जो तुमने तो कुर्की करवा दूंगी।
बुलडोजर चलवाकर फिर मैं बादलों को फड़वा दूंगी।।
बादल बेचारे क्या करते कुछ ब्याज भी था दे डाला।
थोड़ा सा ब्याज दिया यू पी को बाकी कर गए घोटाला।।
फिर धरती पर्वतों से मिल छापे भी खुब डलवाये।
बादलों पर चलवा बुल्डोजर पानी निकाल सब लाये।।
कहीं पे पानी इतना आया घर मकान सब डूब गए।
सड़कें तो तालाब बन गईं पर्वत भी सारे टूट गए।।
अब धरती है शान्त हो गई वो भी क्या कर सकती।
मानव ने प्रकृति किया जो दोहन तो जनता क्यों न मरती।।
जल का दोहन बंद करो व्यर्थ में जल ना बहाओ।
धरती माता को जल पीने दो कुछ तो तुम जल को बचाओ।।
जल से ही जीवों का कल है मत करो व्यर्थ का दोहन।
आने वाली पीढ़ी के हित करो कुछ जल संकुचन।।
स्वरचित:- विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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6 Comments

बहुत ही सुंदर और संदेश देती हुई अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

02-Oct-2023 01:42 PM

👏👌

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Babita patel

02-Oct-2023 11:01 AM

Awesome

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